पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२१७

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तृतीय सर्ग अजग, सजग, जड,-अजड,अचर,-चर होगे मेरे पग-पग पे, मानव हिय में अभिनव विप्लव होगा एक एक डग पे, अधियाला उजियाला होगा रात्रि दिवस बन आएगी, उदित ज्ञान-रवि की किरणे धन- वन में छन-छन आएगी , जगल के अधखुले नयन से अति कृतज्ञता सस्कृति-शून्य हृदय मे उस क्षण अति रसज्ञता सरसेगी । बरसेगी, । ६५ वन मे, विहस, अवतरित होगा- जिस क्षण प्रथम प्रभात,सखी, जिस क्षण, सहसा, छिप जाएगी घन-तिमिरावत सखी, जिस दिन वन के दृग देखेंगे यह अज्ञात, सखी, जिस क्षण निद्रित वन मे होगा जागृति का उत्पात, सखी, वह दिन,वह क्षण, वह मुहूर्त, वह- घटिका स्वर्णमयी उस दिन राम-लखन-जीवन की- आकाक्षा विजयी होगी होगी, २०३-