पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२१८

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ऊम्मिला मे सुस्नान घोर अविद्या को विद्या नल- कराने को, ज्वलित बहिन मै लिए जा रहा-- अज्ञान हटाने को, सुमुखि, मूढतामय खल वल्कल जल-जल अनल-रूप होगा, अन्तर तर के रुद्ध भाव का सुन्दर अमल होगा, भय-मिश्रित नैराश्य-भावना प्राशा मे परिणत होगी, भय की छाती अभय-वाण से- बिध-विध क्षत-विक्षत होगी । रजनी-चर, -अज्ञान भयकर, मोह, प्रमाद, विकार बुरे, क्रोध, काम, हिसादि, रूप में विचरे वन मे दुरे-दुरे,- दुबके तिमिरावृत गह्वर मे नही रश्मि का लेश जहा, अप्रकाश, भय, असत् वृत्तिया, फैला सम्भ्रम, क्लेश वहा, वसुधा का यह दुख हरने को मै सज्जित हो चला, प्रिये, तुम्हे तडपती छोड, हृदय मे- अति लज्जित हो चला, प्रिये ।