पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२२०

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जम्मिला प्रभात-दर्शन ७३ इस प्रभात मे आदि सृष्टि का, नव होगा, इस नव जागृति का परिरम्भण, सुमुखि, रोमहर्षण होगा, ज्ञान-सचेतनता मय कम्पन- से हिय-सघर्षण होगा, नई सूझ, इस नई बूझ का आकुल सकर्षण होगा, दीख पडेगी बलि-बलि जाती जडता पर नव चेतनता, मूच्छित-सी, दिखलाई देगी, यह अज्ञान-अचेतनता 1 ७४ तनिक निहारो नवल' सबेरा, आखो मे सपना भर के, तनिक निहारो उन घडियो को, सब जग को अपना कर के, मेरे-तेरे का आकुचित यह मण्डल लधित करके, नव - सदेश - वहन - पावनता तुम देखोगी जी भर के, उस तादात्म्य भाव मे, स्वामिनि, दुसह वेदना कही नहीं, विप्रयोग-सयोग रोग की यह विवेचना नहीं कही । + २०६