पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२२१

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तृतीय सर्ग ७५ प्रथम किरण-आलोकित क्षण वे, प्रथम प्रभात-अलकृत वे, प्रथम सुहामित, प्रथम सुभाषित, मुखरित नव-स्वर-भकृत वे, जनरव पूजित, कलरव कूजित, गजित रजित वे घडिया,- जिन के वक्षस्थल से उठती नव-गायन-ध्वनि की कडिया, प्रात-समीरण के धागे मे, जागृत-क्षण-मणि की लडिया, चमक-चमक खोलेगी अलसित जग-जन-गण की प्रॉखडिया- ७६ नवल प्रभात,-धन्य, युग- परिवर्तक आदर्शो का सपना, प्रथम प्रभात,-धन्य,फल लाया- वृद्ध प्रजापति का तपना, आदि प्रभात,-धन्य,जगदीश्वर- की प्रेरणा निराली-सी, नित्य प्रभात,-धन्य, सविता की नवल किरण मतवाली-सी, अवध-प्रभात,-धन्य, ले प्राया राम वन-गमन की घटिका, विपिन-प्रभात,-धन्य, आलोकित होगी ज्ञान-किरण स्फटिका ।