पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२२४

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कम्पिला कल्याण हुआ, प्रथम-प्रात मे, देवि, अम्मिल, भीषण गिरि- निर्माण अगम तुग शिखरो का, गहरे- गह्वर का शैल-शू खलाये कल-जल से ऐसे आविर्भूत ज्यो अति मथित भाण्ड से अभिनव तत्त्व-राशि उद्भूत खडी-खडी वन्दना कर रही है गिरि-मालाएँ तब से, सखि, देखो तो, अलख-झलक को- जगा रही है ये कब से 1 ८२ प्रथम-प्रभात क्षणो मे, सुन्दरि, हुआ प्रपूर्ण उदधि-सचय, घिर-घिर कर यो जुट आया जल ज्यो माँ की छाती मे, पय, प्रथम लहर उस दिन जब उट्ठी तब अद्भत उद्घोष हुआ, मानो बद्ध पूर्णता के हिय- मध्य मुक्ति-आक्रोश हुआ, प्रथम सबेरे के दिन लहर, कुछ आतुर-सी दौड पडी, मानो सीमा तथा असीमा मे कुछ होडा-होड पडी । ॥