पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय सर्ग ज्वालामुखी धधकते भडके उस प्रभात मे भूतल से, सचित आग उठा लाए वे, पृथ्वी के वक्षस्थल से, आदि प्रजापति की तप-ज्वाला की प्रज्वलित निशानी वे, सौम्य प्रात की अति करालता की सकलित चिन्हानी वे, सुन्दरि, यह सत्यता अनूठी- है, ध्रुव है, विकराला है. जिस पृथ्वी पर जीवन-जल है, उसके हिय मे ज्वाला है । ५४ प्रथम प्रभात क्षणो मे, स्वामिनि, फिर प्रजनन के भाव जगे, अथवा जडता की छाती मे चेतनता के घाव लगे, जड मे हुआ अकुरित चेतन, प्रस्फुटिता नव-शक्ति स्वर-प्रणोदना से जडता मे- सजग भाव-अभिव्यक्ति हुई, जल-कल-कल मे जीबन खल-बल का चचल सचार हुआ, सम्यक रूपेण सरण-कृत ऐसा यह ससार हुमा ?