पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२३२

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ऊम्मिला 26 है कल्याणि, मुझे साहस दो, बल दो, दृढता दान करो, मुझ, तव नयन-तरगिणि-वाहित- लक्ष्मण का, कुछ त्राण करो, ह विदेह नन्दिनी, हृदय मे- वैदेही-निष्ठा भर दो, मत अकुलाओ, हॅस मुसका कर मुझको आज विदा कर दो, तुम्ही बता दो, समझाऊँ क्या कह कर तुम को, प्राण-प्रिये, सदा तुम्हारी शुद्ध बुद्धि का मुझको है अभिमान, प्रिये । विष-पीयूष मिले है जीवन- मधु मे एक सग, रानी, सुधा-पात्र से भी है छलका करता गरल रग, रानी, जीवन-धारण से जागी यह- आत्मार्पण-उमग, रानी, विष से अमिय-गन्ध, मधु-रस से उठती विष-तरग, स्वर-रग मे करुण हूक है, मिला रुदन मे गायन-स्वन, गुंथा हुआ है मरण-भाव मे, हे सुकुमारि, अमर जीवन । रानी, .