पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ऊम्मिला हार कहाँ? हिय-भार कहाँ ? हिय-- मे मनुहार यहाँ छाई, मेरी रानी, विमल ऊम्मिले, यह घटिका विष ले आई, मौन सैन से, सरस बैन से, मदिर नैन से, कह दो यह,- कि तुम चढा जानो ये प्याले, मत झिझको अब यो रह-रह, गहर गरल की लहर उठ रही, उतराने दो अब बह-बह, कर लेने दो, स्वामिनि मुझको, गरल-पान यह सुबह-सुबह । १०२ गरलमयी तुम, सुधामयी तुम, तुम मेरी मदिरा-बाला, अभय-दान देती, मदमाती, मुझको कर दो मतवाला, आज विश्व देखे कि अम्मिला- मधु-लोभी, यह मस्त लखन, किस मस्ती से गरल-पान कर, झूम रहा अम्लान वदन, आज तुम्हारी मधु-शाला का यह अहनिशि पीने वाला, मृत्यु-पान कर हो जायेगा प्राज अमर जीने वाला ! २२०