पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२४०

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ऊम्मिला बस तुम और सुमित्रा माता, दोनो मुझ को जानो हो, हिय की सकल प्रेरणाएँ तुम दोनो ही पहचानो हो, और कौन इस त्रेता युग मे है जो मुझको जान सके ? और कौन है जो मुझ को कुछ समझ सके, पहचान सके ? मेरे सारे भेद-भरम को समझो हो, सास-बहू तुम दोनो मेरे धरम-करम को समझो हो । तुम दोनो ही ११४ मेरी माता मेरी तपस्विनी जननी की- तुम हो करुण छटा, रानी, मैने तुम मे देखी माँ की अरुण तपस्या, कल्याणी । की करुणा का तुम हो मूर्त स्वरूप, प्रिये, उनके जीवन की अनबोली तुम हो व्यथा अनूप, प्रिये, तुम दोनो पर त्रेता युग का सब नारीत्व निछावर है, तुम दोनो के चरण-नखो से तप-भावना उजागर