पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२४६

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ऊम्मिला १२५ देव, तुम्हारे शुभ दर्शन से मेरा जीवन धन्य हुआ, श्री चरणो मे आत्म-निवेदन मेरा विनत, अनन्य हुया, तुम मेरी शुद्धा निष्ठा, प्रिय, तुम मेरी परमागति हो, तुम मम ज्ञान-राशि तुम मेरी- पावन परब्रह्म-रति हो, तुम मेरे सचित प्रसाद हो- जीवन-किसलय-सम्पुट के, बडे जतन से तुम्हे पा सकी हूँ, हे प्राण, स्वयम् लुट के । १२६ तुम मेरे यौवन-निशीथ की- दीप-शिखा एकाकिनी यात्रिणी की तुम, हो पालोकमयी बाती, तुम हो मेरे सुभग सबेरे, मेरे बालातप तुम हो, जप तुम हो, तप तुम हो, अव्यय- मम अश्वत्थ विटप तुम हो, तुम मेरे प्रज्वलित हुताशन- अधिष्ठान आत्माहुति तुम हो चिर प्रकाश दाता, प्रिय, मेरे जीवन की द्युति के । इठलाती, २३२