पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२४८

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अम्मला १२६ तुम मम कृति-पति,मति-पति रति-पति, तुम मम चिर अविकारी हो, तुम मम प्रकृत कला कौशल, तुम- नवल भाव सचारी हो, तुम मेरी तूलिका, सुकठिनी, तुम मेरी छबि, तुम कविता, तुम हो मेरे अमल चन्द्रमा, तुम जीवन-नभ-सविता, तुम हो मेरी प्रेम-पूर्णता, तुम मेरी आध्यात्मिकता, तुम मेरे आराध्य देव हो- तुम हो मेरी तात्विकता । मम मेरे जन्म - जन्म के तुम प्रभु, मैं तव चरणो की दासी, तुम मेरे चिर-नेह भिखारी, मेरे हृदय-देश-वासी, मेरे द्वारे अलख जगाते- तुम शिव शकर रूप बने, मेरा अह-भाव-विष पीते- तुम प्रलयकर बने, खूब लिया सदेश-वहन का अतुल भार अपने शिर यह, खूब किया जो आज कर लिया निज-जीवन-पथ सुस्थिर यह । , २३४