पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२४९

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तृतीय सर्ग प्रथम प्रात का ऋण भुगताने को अब विपिन-गमन होगा, वन जग-मग आलोकित होगा चिर अज्ञान-दमन होगा, विजन-गमन मिस जन-गण-सग्रह का सदेश-वहन होगा, अथवा किसी ऊम्मिला का सुख- उपवन-देश-दहन होगा, आग लगा, सुख-बाग जलाए- राग-सुहाग लुटाते-से, मेरे प्रिय, तुम विपिन पधारो, ममता-मोह छुटाते-से । १३२ मेरी करुणामयी सुमित्रा- माँ रोएँगी, रोने दो, ओ मेरे आखेटक, अपने- ही मन की तुम होने दो, मैं ? मैं इन अपनी आँखो को फोडूंगी, ये रोवे, देखूगी कि कही न तुम्हारे पथ की बाधाएँ होवे, तुम जाओ, सुखेन जाओ, हम- दोनो की कुछ बात नही, हमे चलित कर दे, यह चौदह वर्षों की न बिसात कही। यदि २३५