पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२५१

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तृतीय सर्ग ? यह कैकेयी कौन, कि जो श्री- राम चन्द्र को भेजे वन ? यह कैकेयी कौन ? उजाडे जो सीता का सुखद सदन ५ यह कैकेयी कौन ? ऊम्मिला का उपवन जो करे दहन ल सुमित्रा माता की गोदी का धन ? आर्यपुत्र, मैं ? मैं कुछ भी तो समझ न पाई ये कर्तब, कोसल जनपद मे यह विप्लव हुआ कहो क्यो ? कैसे? कब ? कैकेयी? लूट 1 सब जन हुए आज पागल ? या- हूँ बौरानी-सी? क्या मै ही यो सोच रही हूँ मूतिमती नादानी-सी ? यह अन्धेर ? प्रचण्ड मौर्य का यह निष्ठुर आदेश, प्रभो,- तुम भी धर्म, धर्म कहते हो इसको हे प्राणेश, प्रभो, आग लगे इस धर्म-क्रान्ति में जो बुद्धि का विनाश करे, है कैसा यह धर्म कि जो जन- गण के हृदय निराश करे? 1 २३७