पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२६

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+ २० विमल उपवन इधर को आ मिले है, सुरभिमय पुष्प जिन मे ये खिले है , जुही के भुज समीरण से ,हिले है चमेली-नयन-सम्पुट अध खिले है । २१ निपट नि शक बिहँगो की अवलियाँ- हठीली चूमती है फूल-कलियाँ निनादित हो रही है कुज गलियाँ चतुर मालिन चुनै है फूल डलियाँ । २२ थकित-सी, कल्पने, सुप्रदक्षिणा यह- हुई सम्पूर्ण, लो अब दक्षिणा यह- चलो देखे पुरी सुविचक्षणा यह- जनक नृप रक्षिता, शुभ लक्षणा यह । 2