पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२६३

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तृतीय सर्ग सृजन-निशानी है, है विद्रोह पतित-पावन, वह अभिनव है विद्रोह नित्य जाग्रति मय, गति की गहन निशानी है, अलस, मदिर, रसमय, स्वप्नोस्थित नयनो का वह सपना यह विद्रोह नवाशा -पूरित हिय का विकल तडपना है, प्रिय-भविष्य-दर्शन की आशा है विद्रोही के हिय मे, सुख-बलि है, आत्माहुति है, नित- इस के जीवन सक्रिय मे। सकल सृष्टि विद्रोह-कला की एक लहर मस्तानी इसीलिए प्रति वस्तु यहाँ की, प्रियतम, पानी-जानी स्थिरता केवल जडता मे है जीवन मे अस्थैर्य भरा, इसीलिए तो मानव-हिय मे सतत विकास-अधैर्य भरा, सहज हठीले तुम विद्रोही, दरसा दो विद्रोह-कला, चूर्ण-चूर्ण निज पदाधात से, कर दो भीम शिला अचला । २४६