पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अम्मिला इन आब्रह्म भुवन लोकान्तर- में विद्रोह सतत छाया, पुरुप, प्रकृति के बीच दृष्टिगत होती चिर विरोध छाया, एक सचेतन है, दूजी ने- जडता ही को अपनाया, पुरुष अगुण, गुणमयी प्रकृति है, अक्षर पुरुष, क्षरा माया, बन्धन-मुक्ति, सगुण-निर्गुण के बीच विरोध-भाव प्राया, अथवा यह विद्रोह निरजन- रजन अपना रंग लाया 1 क्षर-अक्षर में, अचर-सचर में- अजर-अमर विद्रोह भरा, परम पुरुप की द्रोह-रूपिणी है यह प्रकृति परा-अपरा, कर जड से विद्रोह, सचेतन अकुर आविर्भून हुआ, कर विद्रोह परम निर्गुण से प्रसूत हुआ, फिर तुम आज अवध मे विप्लव करने से क्यों डरते हो ? प्रिय, बतलायो, क्यो चुपके स पितुराज्ञा शिर धरत हो ? गुणमय विश्व