पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२६६

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ऊम्मिला विद्रोही है ज्ञान-वह्नि का- पुज, प्रचण्ड, अमन्द, ज्वलन्त, धर्म, विचार, सुसस्कृति, गति का प्रखर प्रकाश अजस्त्र, अनन्त, नव-विचार-उत्पादक जो भी है, बस, वह विद्रोही है, नवल-भाव-उन्नायक जो भी है, वह ही विद्रोही है, तुम भी विद्रोही हो, प्रिय, तुम- परिपाटी के शत्रु बडे, सार-शून्य रूढियाँ तुम्हे किमि रख सकती है यो जकडे ? अन्ध, अविश्लेषित, अविचारित स्वीकृति ही आडम्बर गुणातीत की अस्वीकृति का चिन्ह धरा है, अम्बर है, 'निर्गुण लीलामय की यह सब लीला अस्वीकृति-मय है,, स्वीकृति मे यह विश्व कहाँ है ? स्वीकृति में लय ही लय है, तुम हो सगुण रूप मेरे, प्रिय, निज अस्वीकृति प्रकट करो, आज गुरोराज्ञालधित कर पौर-जानपद-कष्ट हरो । २५२