पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२७२

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अम्मिना पवन १७७ जव तुम वन मे होगे, तब यदि । ऋतुनो का ऊधम होगा,- तो मेरा क्या होगा? वह दुख, बोलो, कैसे कम होगा ? मन-मन करती जब आवेगी मदोन्मत्ता बहती, जब मम ऑगन मे डोलेगी- सुरत अतीत कथा कहती,- तव मेरे इस निष्ठुर हिय का होगा कैसा हाल, कहो ? कैसे समझाऊँगी इसको- मै, हे दशरथलाल, कहो ? १७८ उषा, प्रात, मध्यान्ह, सॉझ, सब- नित प्रति आएँ-जाएंगे, नैश-गगन मे नखत हंसेगे, निशानाथ मुसकाएँगे, काली रात , सतत ज्योत्स्ना-मय, निशि का यों उद्भव होगा, कभी स्फटिक दिन, कभी साध्र दिन का सुरम्य ताण्डव होगा, रमण, तुम्हारी अनुपस्थिति, मे कैसे इसे सहूँगी मै 7 कौन यहाँ होगा जिस से निज हिय की कथा कहूँगी मै ?