पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२७७

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तृतीय सर्ग १८७ प्रिये, यह वरदान और प्राज्ञा तो, औपचारिकता है, राज भरत को, विपिन राम को, यह सब सासारिकता है, विपिन-गमन से ज्ञान-धर्म की विस्तृत स्फूर्ति नई होगी, अत मात की विजयोत्कण्ठा की सत्ति नहीं होगी, विपिन-गमन मास्कृतिक विजय स केवल उत्प्राणित होगा, वह मन-रजन, जन-दुख-भजन सब जग-सम्मानित होगा । १८८ तुम मत समझो इस को केवल कौटुम्बिक विवाद, रानी, तनिक पुराणमयी आँखो से इसको देखो, आज नवल इतिहास-पृष्ठ का अभिनव श्रीगणेश होगा,- उस पुराण का, जिसका नायक सीता-पति रमेश होगा, धार्मिक, सास्कृतिक, सामाजिक, तत्त्व विचार सिखाने को,- आर्य राम अवतीर्ण हुए है जग को पन्थ दिखाने को। कल्याणी, २६३