पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२८

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ऊम्मिला मन्त्रोच्चारी सु-पट' पहने, ब्राह्मणो की कतार- प्रात साय पुर-परिक्रमा को यहाँ पॉव धारे , रम्या वीथी यह मुदमयी 'मगलावीथि' नामा- दुख-क्लेशोद्भव भय-व्यथा मेटती है अकामा । ६ क्यो जाते है प्रतिदिन सभी पौर ये धूमने को ? क्यो जाते है नगर भर की धूल को चूमने को ? ये सकेताक्षर कठिन है, गूढ भावो भरे है सीधी-सादी यह परिक्रमा मूढता के परे है । 1 ७ आकृष्टा हो जिस नियम से भू सदा घूमती है- सलग्ना हो जिस नियम मे डालियाँ झूमती है-- गूढ ज्ञानी, जनकपुर में, है वही देखते ये, विश्वो की है द्रुत परिक्रमा-श खला पेखते ये । प्राची से, जो सुपथ, नृप का पश्चिमान्त प्रदेश- बॉधे है, ज्यो ललिन दुलही प्रेम की गाँठ शेष, शोभा में है अमित, वह है 'राजमार्ग' प्रसिद्ध, व्यापारी के सकल जिससे कार्य-व्यापार सिद्ध । सीचा जाता नित जल-कणो से सदा राजमार्ग , मीठी-मीठी कलित कलिका गध से पूर्ण मार्ग क्या ही शोभामय यह पुरी है विदेही, अनगा, मानो भू मे, अहह, प्रकटी आन आकाश-गगा । 7