पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२८७

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तृतीय सर्ग के दुख-सुख २०७ सती सुमित्रा माँ के जीवन की गहराई, नयनो से नापने निमिष मे सीता प्राज यहाँ आई, आज बलाएँ ले लेने दो तुम दोनो की इसी तरह, सकुचो मत, शीतल होने दो नयन, ऊम्मिले, किसी तरह, त्वम् अखण्ड सौभाग्यवती भव, देवि, म्मिले, कल्याणी, अवधि-अन्त में पूर्ण सुखी तुम होगी, प्रो बहिना रानी । २०५ अच्युत सती राम-जाया की तुम यह आशिष गृहण करो, इस वियोग को, विमल ऊम्मिले, धीर भाव से सहन करो, नही मानते, बडे हठी है लाल लखन, बरबस, बहन, कर रहे है ये, आर्य-पुत्र का भार-वहन कौन आज है सकल त्रिलोकी मे, जो पद-नख पे इनके- न्यौछावर सत्वर न करेगा श्री, वैभव, सब गिन-गिन के?" समझाए भी . २७३