पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२८८

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जम्मिला पॉखड़ियाँ, २०६ यो कहते-कहते भर आई श्री सीता की ऑस्खडियाँ, मानो सीकर-कण अमिषिक्ता हुई कमल की सजल कमल-दल से जल ढल-ढल अमल कपोलो पर ज्यो करुणा-कर्षण, हिय-तल से, व्याकुल जल भर-भर लाया, श्री सीता ने अपनी सजला आँखे पोछी अचल से, ज्यो धैर्य ने शान्त होने को कहा भावना चचल प्राया, शुद्ध भक्ति २१० लक्ष्मण ने सीता-चरणो मे उठकर किया बन्दन, ज्यो सदेह विश्वास कर रहा का अभिनन्दन, सीता ने लक्ष्मण को कम्पन- युत शुभ आशीर्वाद दिया, ज्यो याचक को करुण कृपा ने कम्पनशील प्रसाद फिर सीता से मिली ऊम्मिला- अमित शोक-तप्ता अरुणा, ज्यो अखण्ड शक्ति मे सन्निहित हो जाती गभीर करुणा । दिया: