पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२९४

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म्मिला जानो, २२१ अच्छा है, जीजी, तुम जानो, हिय मे गड्ढा करती-सी, जाओ, अपने चिर-वियोग की चिनगारी याँ धरती - सी, आज याद आते है जीवन के सब मधुमय क्षण, जाओ, वे देखो, आते है- बालापन के सुसस्मरण, ओ जीजी, देखो, वह मों, वे- तात-चरण, वे गुर्वाणी, वे लीलाएँ, वह तुतली-तुतली वे क्रीडाएँ, बाणी । २२२ वह किलकारी भरी कण्ठ-स्वर- लहरी, वह सुरम्य उपवन, वह रोना, वह मचल रूठना, वह हँसना, वह पुष्प-चयन, वह मॉ का दुलार, वत्सलता- वह, वे उनके मृदु चुम्बन, वह झुंझलाहट, जब होता था दोनो का वेणी-गुम्फन, मॉ से यह झगडा कि ऊम्मिला को चुम्मी दी, न दी हमे- उस को ही दुलार करती हो, अब समझी मै खूब तुम्हे । २००