पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२९७

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तृतीय सर्ग २२७ अब तक कभी नही समझा था, कि यह वियोग-व्यथा क्या है ? अब तक यही समझ रक्खा था, जीवन एक मधु कथा है, सीता और अम्मिला बिछुडे,- असम्भावना-सी यह थी, लखन ऊम्मिला पृथक् - पृथक् हो, यह शका भी दुसह थी, कौन जानता था भविष्य यह- अमित हलाहल-मय होगा ? किसे ज्ञात था यह भावी का समय अश्रु-जल मय होगा? २२८ अभी अभी ये कहते थे यह कि तुम सुनो मेरी वाणी- मधु-पीयूष मिले है जीवन- मे सग-सग, जीजी, यह सत्यता, नित्यता- यह, हृदयगम आज हुई, जान गई कितनी जल्दी सुख- घटिका होती छई-मुई, सुइयों-सुइयाँ सी चुभ गइयाँ, मेरे ही-तल मे, रम्य रमण-क्षण गए, वेदना- व्यथा आज मुझ पर रीझी । रानी; जीजी, २८३