पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२९८

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कम्मिला २२६ जीजी, कभी-कभी घन वन मे स्मरण मुझे भी कर लेना, कभी-कभी अपने देवर के हिय में मम स्मृति भर देना, आर्य राम के श्री चरणो मे करना नित मेरा बदन, तनिक सम्हाले रखना, है अति उग्र सुमित्रा के मेरे सेदुर की घन-वन म हे तुम अच्युत सती भवानी, हे मेरी अच्छी बहना 1" नदन, रक्षा तुम करती रहना, २३० "पो ऊम्मिले सलौनी, मरी अनुजा, प्रो लक्ष्मण-जाया, जनक देव सम सिद्ध तपोधन- के हिय की तुम मृदु माया, अम्मा की तुम बडी लाडिली- छोटी बेटी नेह भरी, तुम लक्ष्मण-स्वामिनि, धन-दामिनि तुम करुणा-रस-नेह भरी, तेजमयी तुम, भोजमयी तुम, परम तपस्या-भाव मयी, रागमयी, वैराग्यमयी, तुम समवेदना स्वभावमयी । २८४