पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३०४

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अम्मिला सीता-राम, ? २४१ यह जीवन अनन्त है, रानी, अन्त-वन्त है यह बनवास, प्रेम-योग अच्युत, अनन्त है, क्षण भगुर वियोग का त्रास, ऊम्मिला-लक्ष्मण का सम्बन्ध अनन्त, अछेद्य, पर वियोग का यह अन्तर है, दुर्गम नही, नही दुर्भेद्य, स्वय उठेगा यह अवगुठन, होगा फिर सयोग-विहार, क्यो छोटा करती हो मन को, अरी ऊम्मिले, तुम इस बार २४२ खूब ठीक तुम कहती हो है- अवधि-उदधि गभीर पर, तव तपश्चरण नौका है, श्रद्धा है पतवार, बहन लक्ष्मण भैया की सस्मृति है केवट, आशा धीर अवधि-अन्त है, इस नौका का नटवर्ती विश्राम भवन नौका - चालन -प्रेरणमय सीता के आशीर्वचन, तुम अवश्य सकुशल पहुँचोगी सागर के उस पार, बहन । गहन, 1 पवन, 1 २६०