पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३१०

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ऊम्मिला २५३ राम,--उपद्रष्टा, अनुमन्ता, भर्ता, भोक्ता, सर्वेश्वर, राम,-विदेही, राम, सदेही "राम,-सीयपति, परमेश्वर, राम, रमापति, त्रेतायुग की सस्कृति की विभूति प्यारी, राम, त्याग, तप, जन रजन की मगन लगन न्यारी, न्यारी, राम-शब्द वह जो कि चराचर मे फैला है, गूंज रहा, 'राम,-अखण्ड शक्ति वह, जिसकी सत्ता फैली यहाँ-वहाँ । २५४ पुरुषोत्तम, सर्वोत्तम, रविकुल - कमल - दिवाकर के, राम पधारे, जन रखवारे, अशरण-शरण, खडी हो गई दोनो बहने हिय की दुर्बल त्रुटियाँ-सी फिर ऊम्मिला राम चरणो मे ढुली गग - जल - लुटिया - सी, कोमल, दृढ कर-पत्र राम के- छए ऊम्मिला के शिर पे, मानो सुस्थिरता छाई हो विकल भावना अस्थिर पे । ✓ तमहर, गुणाकर वे, २९६