पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३१३

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तृतीय सा ? २५६ यज्ञाहुति की पुण्य भस्म ही से विभु ने यह सृष्टि रची, यज्ञाहुति से ही, जग में जन, गण-हिताय यह वृष्टि मची, देवि, जानती हो यज्ञाहुति वह क्या है ? क्या है वह यज्ञ ? शुद्ध यज्ञ किस को कहते है श्री विदेह सम मुनि तत्वज्ञ ? ये तिल-घृत-इन्धन-आहुतियाँ है विडम्बना यज्ञो की, प्रचलित यज्ञो की परिपाटी है प्रवचना यज्ञो की । २६० स्त्रष्टि रची प्रभु ने निर्गुणता- की अपनी आहुति दे के, जगत रचा माता ने अपने हिय की रुधिराहुति दे के, आत्म-दान-सेवा की यज्ञा- हुतियो ही से यह जग है, यज्ञ-भाव से मुख मोड़ें वह आत्म-प्रवचक, जग-ठग है, उसी यज्ञ का निठुर निमन्त्रण ले कर आया है यह क्षण, तुम्ही बता दो, बहू, क्या करे ? घर बैठे या जाएँ वन ?