पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३१९

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तृतीय सर्ग २७० poken राम सुमित्रा के वक्षस्थल पर शिर रख यो व्यक्त हुए- भानो लघु चापल्य-भाव सब वत्सलता-अनुरक्त पूज्य सुमित्रा माता ने ली कई बलाएँ तन्मय हो, ज्यो प्राचीन-नवीन विचारो- मे सघटित समन्वय हो, एक हाथ से खीच हृदय से लिपटाया सीता को यो, सन्ध्या ने अपने हिय मे हो खीचा दोपहरी को ज्यो । परत २७१ इधर-उधर सिय-राम, सुमित्रा- माँ उन के मध्यस्था थी, मानो यौवन-स्मृतियो से घिर बैठी वृद्धावस्था थी, अथवा ऊषा और प्रात बिच रेखा-सी धूमिल तम की किवा दो गतियो के अन्तर में वह श्वास परिश्रम की, सीय-राम के मध्य सुमित्रा यो शोभित हो गई भली ज्यो दो चचल मायाप्रो को लिए करुणा निकली। ३०५