पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३२

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अम्मिला २५ ये देखो, है जनकपुर की उच्च अट्टालिकाये , शिल्प्यारों की स्वकर ग्रथिता ये बडी मालिकाये, आखे. देखे इस विभव की आर्य-आभा सलौनी, मानी, रक्षारत, प्रिय, गुणी भूप की कीत्ति-छौनी। आर्यो के ये सुखद गृह है स्वच्छता के सुधाम , स्निग्धा, मन्दा सतत बहती वायु है अप्ट याम , चौडे वातायन सुभग से, झाकते अशुमाली, चन्द्र ज्योत्स्ना, कलित कलिका डाल जाती निराली । २७ पूता वेदी चतुर कर ने प्रागणो मे गढी है,- मानो याञ्चा, नत शिर किये, हाथ जोडे, खडी है , प्रार्थी नारी-नर जब यहाँ बैठते आस-पास, नक्षत्रो का तव प्रकट हो दीखता भव्य राम । २८ सामाजीय-प्रगति-रथ के जो यहाँ सारथी है- पुण्यश्लोका गहन जिनकी पुण्यदा भारती है- वे है सु-ब्राह्मण दृढव्रती, धर्मधारी, तपस्वी, होगाभ्यासी, विगत काना, तत्त्वदर्शी, मनस्वी । २६ लम्बे-लम्बे सबल भुज से देश-स्वातन्त्र्य प्यारा- रक्खे है जो अभय बन के, सीच हृद्-रक्त-धारा, वीरो में है मुकुटमणि वे क्षत्रियो के सु-झुण्ड छेत्ता है वे प्रखर असि से दस्युप्रो के नृ-मुन्ड । 1