पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३२३

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तृतीय सर्ग लाल, २७८ जननि, अभी तक गूज रही है वे लोरियाँ कि 'मेरे बाल, देखो वह निदिया आई है तुम्हे खिलाने, मेरे चन्दा मामा चुम्मी देने आया होकर हाल-बिहाल, सो जाओ मेरे लालन, मम- गोदी को तुम करो निहाल' , एक बार फिर वह स्वर गा दो, आज सुला दो सब सशय, अपना अचल फैला दो, मॉ, कर दो हम को अजय, अभय । २७६ ठुमुक-ठुमुक तुम आज नचा दो, अपने ये नन्हे शिशु द्वय, कर दो इनके चरण चलित तुम आदर्शों की ओर हिय थिरका दो, मन थिरका दो कर दो हम सब को तन्मय, अलख-झलक झॉकी-दर्शन का हिय में तुम भर दो निश्चय, ये जाए कोख के तुम्हारे आज है यौवन-मय, देखो, अपने शिशुओ की यह भर विस्मय । अभय, क्रीडा दृग