पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३२६

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ऊम्मिला २८४ अश्रुसनी, मुसक्यान कनी, परिहास अनी, विगलित करुणा, जग सचालक के हिय की तुम वत्सलता-पाभा अरुणा, मेघ खण्ड सी अमला, सजला, सजग दामिनी सी चपला मातृ-धर्म पालन मे माँ, तुम- अचल हिमाचल सी अचला, गहर गभीर मृदग घोर-सी सेवा मूति सुक्षमता-सी सतत रक्षिका नभ मण्डल-सी सलग्ना हो ममता-सी । सध्या क अश्वत्थ वृक्ष की, डाली-मी तुम कूजित हो, मुखरित, उन्फुल्लित प्रभात की प्राची-सी तुम पूजित हो, कितन पछी अभय गोद रैन-बसेरा करते प्रात, तुम्हारे स्मृति अम्बर में कितने विचरते है, साझ-प्रात, दिन रात, तुम्हारा ही तो एक सहारा आन भला-बुरा, जैसा है वैसा बालक सदा तुम्हारा ह । ३१२