पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३४

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अम्मिला हो जाता है नगर इनके श्री मुखो से प्रतिष्ठ, छा जाती है सुखद सुषमा, दूर होता अनिष्ट छाई मानो जनकपुर मे ये नभो-तारिकाये-- आई है ये गलित करुणा से युता दारिकाये । 7 माताए हो मुदित शिशु के खेल को जोहती हैं मीठी-मीठी सरस बतियाँ चित्त को मोहती है , बाल-क्रीडा-मय भवन है, सौख्य-सौदर्य-मिक्त, आर्यों के है सदन शिरसा बाल-शोभाभिषिक्त । शिक्षा पाते सुगुरुकुल मे देश के ये कुमार कैसा छाया सधन धन-सा शिक्षको का दुलार ? गुर्वाणी की यह बह रही वत्सला प्रीति धार,- स्नानाकाक्षी पुर नगर के बाल आये अपार । ३८ ऋग्वेदीय स्वरित रख से पूर्ण है सुप्रदेश , वेदागो के जटिल विषयो की कथा है विशेष , विद्यार्थी की स्फुटित रसना सस्कृता हो रही है , प्रारब्धो की सुदृढ अथवा शृखला खो रही है । बैठे है यो गुरुजन यहाँ ब्रह्मचर्याश्रमो में , छाई हो ज्यो जल-घन-घटा राम गिर्याश्रमो मे, छोटे-छोटे विमल बटु है चातको की कतारे- दो-दो शमन करती प्यास है ज्ञान-धारे । २०