पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३४३

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तृतीय सर्ग बहू, समझती हो तुम मेरे हिय की गहर गभीर व्यथा तुम से नहीं छिपी है, वेटी, माँ के हिय की धीर-कथा, इस असीम वेदना परिधि से घिरी हुई हूँ, सीमित मैं, अधरज है जीवित हूँ अब तक, और रहूँगी विधिना ने कठोरता-प्रतिनिधि रूपा मुझे बना कर के, धो डाले है अपने कर द्वय, मम हिय मे पाहन भर के । जीवित मै, अब माएं जिस उठाए फिरती आखो मे, हिय मे, मन मे, कभी धूल भी नही लगी थी जिस के उत्फुल्लित तन मे, वही बहू सीता सुकुमारी घूमेगी निर्जन मे, और सुमित्रा राज करेगी यहा महल के आगन मे, हिय फट जाना था, पर है यह- बडा कठोर हृदय, बेटी, इतिहासो मे लिखी जा सकूँ हूँ मै वह निर्दय, बेटी " 7 ३२६