पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३४६

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जम्मिला ३२४ माता, तुम अच्छेद्य कवच वह अपने आशीर्वादो का, पहनाओ अपने पुत्रो को, भय न रहे अपवादो का, मुझको दृढता, स्थैर्य, अचलता- का तुम, माँ, दे दो वरदान, भर दो मेरे अचल मे, मॉ, गिव-सकल्प-रूप अवधि-अन्त में तव-चरणो के दर्शन कर एक बार फिर तव ग्रीवा मे डाल भुजाएँ झूलूगी 1 कल्याण, फिर फूलूंगी, राम विश्व-विजयी, भय किसका? लक्ष्मण दुर्दान्त बली, मेरे पीछे है देवर, है आगे सीता-कान्त बली, सग सग है, जननि, हमारे- तप-साधन-सिद्धान्त बली, कैसे फिर हो सकते भौतिक भय से हम आक्रान्त बली ? आज हो रही है इस नगरी मे नैतिक उत्क्रान्ति भली, हमे मिलेगी निश्चय वन की डगरी मे विश्रान्ति भली 1 ३३२