पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३४७

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तृतीय सर्ग अपने बन्ध सिद्ध राम, साधक लक्ष्मण है, मै साधना-रूप निष्ठा, अपरिग्रह की आज हमारे कुल मे हुई नव प्रतिष्ठा, राज छुटा, छुट गई भोग की सकल वासना वह क्लिष्टा, विजन मिला, हो गई हृदय में त्याग-भावना सश्लिष्टा , मुक्ति-युक्ति मिल गई मधुर यह, आप टूटे, जननि, तुम्हारे राम, लखन ये- भोग-भावना से छुटे ३२७ मेरे पति, मेरे देवर ये, रॅग विराग-त्याग रंग मे, देखूगी सब कौतुक वन के इन दोनो के सँग-सँग में , चौदह वर्षों का वन-अनुभव, ले कर में घर मॉ, कितनी ही कौतुक-माणयाँ अपने संग देवि, तुम्हारी यह उच्छृ खल, कुछ-कुछ यह अल्हड सीता, हो आएगी बडी पडिता बड़ी ज्ञान-अनुभव-नीता 1 आऊँगी, म लाऊँगी,