पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय सर्ग ? ३३० में बोली कि ललन तुम लाए हमे लूट मिथिलापुर से, अब यो बाते बना रहे हो ठगे हुए ठग-ठाकुर-से हम ने माता पिता छोड कर प्राकर यहाँ प्रवाम किया, अपना मम छोड कर, लालन, इम तव गृह में वास किया , फिर भी डाह कर रहे हो तुम क्यो हम में। कुछ न्याय करो , निष्ठुर युवक, युवनियो के प्रति तुम यो मन अन्याय करो । तो बोले कि, डाह की क्या ? म बात कर रहा मन्तर की, निश्चय तुम मब जानो हो कुछ घाते जन्तर-तन्तर की, आर्य गम पर तुम ने पढ़ कर, फूकी कुछ पुडिया ऐमी, कि बम तुम्हारे कर मे उनकी वृत्ति हुई गुडिया जैमी, भगत भग्न भेया भी छोटी भाभी के फरफन्द फंसे और तुम्हारी विमल ऊम्मिल, ने मुझ पर छलछन्द कसे ।