पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३५

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प्रथम सर्ग आओ, देखे अन्न जनक के राज्य के सूत्र नाना , ढॉके है जो जनपद महा, रूप धारे विताना, राज-प्रासाद निकट महा मन्त्रणागार दिव्य, सामन्तो से, विबुध जन से हो रहा पूर्ण भव्य । ४१ धीमान् मन्त्री गण सकल है कार्य मे पूर्ण दक्ष,- निस्वार्थी है सतत रखते राज्य सेवा समक्ष धर्म प्राणा सबल जनता की मनोकामनाएँ होती पूरी सकल सुप्रजा की मनोभावनाएँ । ४२ तेजस्वी है सुजनपद का युद्ध सेना विभाग- ऐसा तीव्र प्रखरतम है मुत्तिमान् सा निदाघ- जो वैरी के सजल सर को सोखता है नितान्त, आर्यों का है विमल धवला कीति का मजु कान्त । हे अध्यक्ष प्रमुख इसके विग्रहो मे यशस्वी,- धारे है वे सचिव पद को, धीर है वे मनस्वी, युद्धो मे वे सतत रखते धर्म को है समक्ष, रम्या 'जै' की मधुर ध्वनि हो पक्ष मे या विपक्ष । ४४ मन्त्री सज्ञा परिचित किये है जिन्हे, वीतराग,- है धारे जो निपुण कर मे सन्धि वाला विभाग,- ये मन्त्री सचिव वर के सग यो सोहते है। जैसे-सन्ध्या-जल कण, शिरस्त्राण को मोहते है ।