पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३५०

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ऊम्मिला ३३२ माताओ को उधर, सुतो को इस दिशि सर करके तुम ने सिक्का खूब जमाया सब के हिय को हर करके तुम ने, इसीलिए कहता हूँ, तुम सब जादूगरनी हो, भाभी सीख साख कुछ आई हो, तुम- सब हिय-हरनी हो, भाभी, मा, लल्ला की इन बातो से चुआ पड रहा मेह घना, तुम जानो हो, विमल अम्मिला पर उनका है नेह घना ।" बहू, जानती हूँ, है हिय मे, वाते कई मेरे उठ-उठ आती है सस्मृतिया हिय मे नई-नई मेरे, पर उनके टटोलने को अब अवसर नही रहा, बेटी अत म्मिला से मैं ने अब- तक कुछ नहीं कहा, बेटी, इसके लिए पडे है चौदह- वरस, नही जत्दी कोई, देख परख लूगी पीछे मै हिय की निधि धोई-धोई । .