पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय सर्ग 1 राम, नयन अभिराम, वन्स, तुम, जलद श्याम, मेरे बारे, जारो करो सनाथ विपिन को, मेरी आखो के तारे लक्ष्मण बत्म, कहूँ क्या तुम से ? भार तुम्हारा गुरुतर अपने पन' को दिखलाने का अाया यह शुभ अवसर है , माम् विद्धि त्वम् जनकनन्दिनी, विद्धि दशरथ त्वम्, विद्धयटवी त्वमयोध्यानगरी, गच्छ बन त्वम् यथा सुखम् । वत्स, वन गमन के मिस मेरे पय की आज परीक्षा है, आज देखना है कैसी मम दुग्ध-धार की दीक्षा एक बार पहले ही अध्वर- नाशक दुष्ट-दलित कर के, तुम दोनो ने दिखलाए है कौतुक निज तीखे शर के, किन्तु परीक्षा अब की, लक्ष्मण, है दुस्तर, है बहुत कडी, पर मम पय-पोषिता तुम्हारी बाहे भी है बडी-बडी ।