पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३५२

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ऊम्मिला तुम आजानु बाहु, लालन मम, जीवन के हो उजियारे, शिव सकल्पमयी निष्ठा-युत विपिन सिधारो, हे प्यारे । स्मरण रहे जीवन अशेष है, मोह न झटका दे तुम को, जीवन की लालसा, मार्ग से कही न भटका दे तुम को , मैं प्रसन्न हूँ, आदर्शों पर तुम को न्यौछावर करके, पूर्ण करो जीवन-सँदेस तुम, लालन, अपना जी भर के । ३३७ स्मरण रखो, सीता है रघुकुल- की लज्जा, गौरव गरिमा, और मातृ-शक्ति है तुम्हारे लिए वत्स, सीता महिमा, यदि सीता को, प्राण तुम्हारे- रहते, ऑच लगी तो तुम को कपूत समदूँगी मुख देखेंगी मै न कभी जाम्रो वन, ज्वलन्त आदर्शो- से उत्प्राणित हो करके, त्याग-तपस्या-रत हो जाओ, अह-भावना खो करके ।" कुछ भी,