पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३५८

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ऊम्मिला १ निर्गुणता वरणावृतकर, हृदय-स्पन्दन-रण अपना- अर्धोन्मीलित नयनो मे, भर विश्व-व्यथा का सपना- अधरो की स्मिति-रेखा से, आन्दोलित करता कम्पन,- क्षण-सक्रम से छुटवाता, परिरम्भण, हिय-अवलम्बन,- है ऐसा कौन खिलाडी करता जो यो मनमानी ? जिस ने सघर्प दिया, वह- है कौन वेदना-दानी ? २ हिय, मटुकी, वेदना,-रई गति चलिता, बना छलकी बूंदे रम गलिता किस के यह मन्थन-दड सम्हाला ? यह चिर मन्थन का किस ने, वरदान डाला ? मथ सृष्टि-तत्व को किस ने करुणा-नवनीत निकाला ? किस ने रस-दान दिया यह नित नया, अतीत, निराला ? अस्तित्व, तक्र, आकर्षण,-रज्जु 7 अदृष्ट हाथो ने शाप दे ३४४