पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३६०

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ऊम्मिला ५ ? कोई दे रहा यहाँ पर जीवन मे एक उलहना, बोलो तो, जग मे कब तक- होगा एकाकी रहना हो बड़े ढूंढने वाले, देखे, ढूढो हम को तो, हम यही छिपे है तुम मे, तुम देखो, कुछ दमको तो, अवगुठन तनिक हटा दो, कुछ दूर करो तम को तो , हम को पाओगे बरबस, तुम अन्तर मे चमको तो । ६ ये युग पर युग बीते है, कुछ खोज रहा है प्राणी, तुम कैसे ? छिपे किधर हो ? वेदनादानी ? अस्तित्व विहग यह जब से- जग का हो गया निराला, जिस क्षण से अवश हुआ है, जग अह-भावना वाला,- जब से यह द्वैत समाया जगती के अन्तर तर मे, तब से मँडराती करुणा सब के मानस-अम्बर मे । हो कहाँ, ३४६