पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३६८

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ऊम्मिला भ २१ उद्ग्रीव हुए, अातुर से, तरु किसको बुला रहे ये ? कुछ सैन निमत्रण देते, क्यो बाहे डुला रहे ये ? है कौन पाहुना जिसकी हिय बीच प्रतीक्षा धारे, है खडे खडे कब से ये, मुरझाए विटप बिचारे । को आमत्रण देते है वर्ष सहस्रो बीते, पर आए नहीं, अभी तक वे निठुर अतिथि मनचीते । २२ आतुरता लिए पधारी सज-सज पत्तियाँ है नृत्य कर रही कब से अकुलाती यहा अकेली, नव अभिसारिका बनी ये द्रुत पवन-यान पे चढ के, पिय को ढूंढने चली है, उड-उड दिन मे पतझड के, ससुराल पत्तियाँ चल दी बिछुडी शाखा-जननी से, पर मिल पाई न अभी तक अपने पिय सजन धनी से । नवेली, ३५४