पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३६९

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चतुर्थ सग शाखामो से हहराती बह रही निमत्रण करुणा, नव किसलय दल के मिस से कॅप उठी वेदना अरुणा, यह जीवन-सिसक निराली अभिव्यक्त हो उठी छिन-छिन, यह क्षणिक चेतना रोई पूरन अनन्त जीवन बिन, चिर जीवन का आवाहन करते शतिया बीती है, वृक्षो पत्तो को आहे- भरते शतिया बीती है 1 २४ कोयलिया विरह-भरी-सी विष बुझे बोल बोले है, वह कुऊ कुऊ के मिस से नभ मे करुणा घोले है, अन्तस्तल की ज्वाला से पड़ गई कोकिला काली उस कूक-हूक से कापी आमो की हरियाली, उमडी कोयल कठो से पिय-मिलन-बिथा मतवाली, पत्तिया कप रह-रह सिहरी प्रति डाली-डाली 1 उठी ३५५