पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३७१

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चतुर्थ सर्ग TE कपोत-कूजन २७ खजन न फुदक प्रकट की अन्वेषण मय आकुलता, प्रकटी मयूर-पखो से की चित्रित सकुलता, प्रकटी आकठ व्यथा-मजुलता, मैना अमित प्रकट की निज अह-स्वभाव-विफलता, कह के भी मैना, मैना, खोई तन्मयी मृदुलता, कर दी विनष्ट क्षण भर मे, अपनी वह परम अतुलता । २८ खजन चचलता प्रकटी अजलिगत चल पारद सी, कुछ लगी ढूढने रह-रह वह आतुर विकल दरद सी, छिन उलझी कुछ दानो मे, वह छिन ठिठकी, छिम अटकी छिन इधर, छिन उधर फुदकी छिन यहाँ, छिन वहाँ भटकी, वह घडी-घडी अकुलाती, कुछ दूढ रही हिय-रजन, पर पा न सकी वह अब तक निज खजन-रूप निरजन 1 ३५७