पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३७४

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ऊम्मिला 1 झुटपुटे समय मे कोई नीरव गायन गाता है, मानस-दिड मडल को यह कम्पित करता जाता लाता है कहाँ-कहाँ से स्वर-सामजस्य निराला ? ऐसा स्वर फूंक रहा है, पडता छाले पर छाला, भर दे, हाँ, निर्दय भर दे, तू रिक्त हृदय मे करुणा, अँधिमारे उसका दे तू दीपशिखा वह अरुणा ३४ छिन्नाभ्र, लालिमा-रजित नभ-बीच डोलता रहता, मानो क्षत, भ्रमित पथिक-सा वह पथ या सई सॉझ वह नभ मे मन लगन अथवा दिनमणि किरणो का सिन्दूर घोलता रहता, प्रति सन्ध्या को नभ स्थल में बादल की नित की क्रीडा, बरसाती ही रहती है तन मन की प्राकुल पीडा । टटोलता रहता, रोलता रहता,