पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३८

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प्रामाद-प्रांगण में १ रुनझुन, रुन-झुन, नन्ही-नन्ही पैजनियाँ झकारे,- चरण-चलन की प्रागण भर में फैल रही गुजारे, किलक-किलक मधु स्रोत बहाती है विदेह की ललियाँ, प्रात पवन भे चिटखी है दो छोटी-छोटी कलियाँ । २ ये दो मुकुल जनकरानी की है जीवन प्रतिछाया, वीतराग मिथिलेश-हृदय की ये है दोनो माया, सीता और ऊम्मिला मानो सरस अमृत के कण है, मौन प्रणय के पचम स्वर मे उद्गीरित गायन है । ३ बोल-दशा मति-मुग्धाप्रो की, प्रानो, छवि अवलोके, प्राओ, प्यारे चरण-चिन्ह को चूमे इन विमलो के, मधुरी-मधुरी, विश्व मोहिनी बतियाँ इनकी सुन ले, हास-पुष्प-कोर्णित है, प्रानो, इन फूलो को चुन ले । ४ काले-काले, लम्बे-लम्बे, केश-कलाप घने से,- उड-उड कर समीर से क्रीडा करते प्रेम सने से,- मानो गन्ध-नुब्ध सर्पो के कृष्ण झुण्ड मतवाले- नाच रहे है, लोट-पोट हो, सुन्दर प्रात काले ।