पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३८०

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ऊम्मिला वह रति-रस-गोप्ता, शाश्वत, वह प्रीति-रीति-रत, मानी, वह प्रेम-नेम-निर्माता, वह अलख-वेदनादानी, वह, जो चोटो पर चोटे देता छानी-छानी, वह, जिसकी टेव यही है, युग-युग की बडी पुरानी, वह कब मिलने वाला है अहमस्मि-रूप-ज्योत्स्ना मे ? वह तो छिटेगा आके सोह-अनूप-ज्योत्स्ना मे ४६ निशि की अपनी उजियारी, निशि की अपनी अँधियारी, नित उसको ढूंढ रही है, ये दोनो पारी-पारी, ना जाने कितने-कितने ये युग अनन्त बीते है ? पर अब तक पडे हुए सब, क्षण, पलक, हस्त, रीते है - है विरह-कथा यह लम्बी, अन्वेषण-कथा पुरानी, है प्रीति रहस्यमयी यहा रस-सनी भाव अरुभानी I