पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/३८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुथ सर्ग पड मानव-हिय में विम्बित है इस चिर-वियोग की झाई, है इसीलिए जीवन रही दुःख-परछाई, ऑसू, हिचकी, आहे ये हृदय-स्पन्दन, आकुलता, यह लगन बावरी, भोली, यह हिय-वेदना-अतुलता हिय का खिच-खिच के क्षण-क्षण टुकडे-टुकडे होना, है ये चिर दुख के प्रतिनिधि यह करुण गीत, यह रोना । 3 यह नित नवीन यह चिर अतीत दुख-गाथा, विरहानल, यह क्रम अनन्त सम्भ्रम का, यह अचल वियोग हिमाचल, यह असन्तोष, यह तडपन, यह लगन अटपटी बौरी, प्रॉखो का लग जाना यह का खिचना बरजोरी, ये सब मानव-अन्तर मे चिर विप्लव मचा रहे है, हृदय-स्पन्दन के मिस ये, सब जग को नचा रहे है ।